Monday, January 28, 2019

क्या ख़ुदकुशी रोकने में मददगार है नीली रोशनी

2013 में एक ऐसा रिसर्च पेपर छपा, जिसने ऑनलाइन दुनिया में तहलका मचा दिया था. सोशल मीडिया पर उस रिसर्च की बुनियाद पर लाखों पोस्ट की गईं. उस रिसर्च के आधार पर हज़ारों की तादाद में स्टोरी भी वायरल हुई थीं.

इस रिसर्च पेपर में ये इशारा किया गया था कि रेलवे स्टेशन पर नीले बल्ब या लैंप लगाने से वहां ख़ुदकुशी की तादाद में भारी कमी आई थी.

वैज्ञानिकों का दावा था कि नीले रंग से स्टेशनों को रोशन करने से आत्महत्या करने के मामलों में 84 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई.

तब से ही दुनिया भर में ये नुस्खा ख़ूब चर्चित हुआ. ये रिसर्च पेपर जापान में छपा था. इसके चर्चित होने पर ख़ुदकुशी की घटनाओं से परेशान कई और देशों ने भी ये प्रयोग किए.

लेकिन, जैसा कि हर पेचीदा वैज्ञानिक क़िस्सों के साथ होता है, नीली रोशनी से ख़ुदकुशी रोकने की बात कहने वाले रिसर्च पेपर को भी हर शेयरिंग के साथ तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया और समझा गया.

इसकी शुरुआत इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में हुई थी. तब जापान की कई रेलवे कंपनियों ने रेलवे स्टेशनों पर नीली रोशनी लगानी शुरू की.

इस कोशिश का मक़सद रेलवे स्टेशनों पर ख़ुदकुशी को रोकना था. कई बार ऐसी छोटी-छोटी बातों से लोगों के बर्ताव में बड़े बदलाव देखने को मिलते हैं.

रेलवे स्टेशनों पर नीली रोशनी करने के पीछे विचार ये था कि ये लोगों की ज़हनी कैफ़ियत पर असर डालती है. 2017 में हुई एक रिसर्च ने इस ख्याल पर मुहर लगाई थी. इस रिसर्च में पाया गया था कि दिमाग़ी तनाव के शिकार लोग अगर कुछ वक़्त नीली रोशनी से भरे कमरे में बिताते हैं, तो उनका ज़हन शांत हो जाता है.

जापान की वासेडा यूनिवर्सिटी की वैज्ञानिक मिचिको यूएडा ने रेलवे कंपनियों के इस प्रयोग के बारे में सुना था. उन्होंने रेलवे के प्रबंधकों से बात की, तो मैनेजरों ने दावा किया कि प्लेटफॉर्म पर नीली रोशनी करने के अच्छे नतीजे आए हैं. ख़ुदकुशी रोकने में ये नुस्खा काफ़ी असरदार साबित हुआ है.

मिचिको यूएडा ने जापान में ख़ुदकुशी के बढ़ते मामलों के पीछे के तमाम कारणों के बारे में रिसर्च की थी. इसके पीछे आर्थिक वजह से लेकर क़ुदरती आपदा और सेलेब्रिटी सुसाइड तक कारण पाए गए थे.

हालांकि, मिचिको ने जब रेलवे कंपनियों के नीली रोशनी से जुड़े दावे को सुना, तो उन्हें शक हुआ. उन्होंने रेलवे कंपनियों से इस बारे में आंकड़े मांगे.

मिचिको ने 71 जापानी रेलवे स्टेशनों पर पिछले दस सालों में हुए ख़ुदकुशी के आंकड़ों को खंगाला, तो उन्होंने पाया कि नीली रोशनी लगाने का कुछ फ़ायदा तो हुआ है. उन्होंने देखा कि ख़ुदकुशी के मामलों में 84 प्रतिशत तक की कमी आई है. इस दावे ने जल्द ही पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ़ खींचा.

जब इस रिसर्च के नतीजे मीडिया में चर्चित होने लगे, तो त्सुकुबा यूनिवर्सिटी के मसाओ इचिकावा का ध्यान भी इस दावे पर गया. उन्होंने ख़ुदकुशी के आंकड़ों की फिर से पड़ताल की.

इचिकावा का कहना था कि इस आंकड़े को दिन और रात में बांटकर देखना ज़रूरी है. क्योंकि दिन में अक्सर प्लेटफॉर्म की लाइट बुझा दी जाती हैं. ऐसे में 24 घंटे के आंकड़े के आधार पर किया गया ये दावा आत्महत्या कम होने की सही तस्वीर नहीं पेश करता.

इचिकावा का कहना है कि असल में नीली रोशनी से ख़ुदकुशी करने की तादाद में केवल 14 फ़ीसद की कमी आई थी. हालांकि ये कमी भी काफ़ी अच्छा बदलाव मानी जाएगी. लेकिन, 84 प्रतिशत के दावे से तो ये बहुत ही कम है.

इचिकावा ने कोशिश की कि वो अपने रिसर्च पेपर के ज़रिए मिचिको यूएडा के दावे का दूसरा पहलू दुनिया के सामने रखेंगे. उनका मक़सद था कि लोग ये न सोचें कि नीली रोशनी जादुई होती है. इसका लोगों पर इतना गहरा असर होता है.

इचिकावा ही नहीं, दूसरे रिसर्चर का भी यही मानना रहा है कि अगर प्लेटफॉर्म पर बैरियर और केवल गाड़ी आने पर खुलने वाले दरवाज़े लगाए जाएं, तो ये ख़ुदकुशी रोकने में ज़्यादा कारगर होंगे. लेकिन, इन्हें लगाने का ख़र्च इतना ज़्यादा है कि रेलवे कंपनियां इन पर अमल नहीं ही करेगीं. हां, प्लेटफॉर्म पर नीली रोशनी करना सस्ता सौदा है.

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